कुंभ में संतों के शिविर को लेकर संशय समाप्त हो गया है। मेला प्रशासन ने साफ कहा है कि इस बार गंगा के किनारे संतों के शिविर नहीं लगेंगे। संत अपने अखाड़ों से ही शाही स्नान के लिए निकलेंगे। अखाड़ों की छावनियों को मेला प्रशासन सभी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराएगा। हालांकि, बैरागी अखाड़ों के संतों के ठहरने की व्यवस्था को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और मेला प्रशासन की संयुक्त बैठक के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
धर्मनगरी के विभिन्न संन्यासी और बैरागी अखाड़ों के संत सरकार और मेला प्रशासन से गंगा किनारे शिविर लगाने के लिए भूमि आवंटन की लगातार मांग कर रहे हैं। यहां तक की कुछ संत तो भूमि आवंटन न होने पर कुंभ के बहिष्कार की चेतावनी भी दे चुके हैं। लेकिन सरकार और मेला प्रशासन दोनों ही कोविड महामारी को देखते हुए किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहता है।केंद्र सरकार पहले ही कुंभ को लेकर जारी एसओपी में बड़े स्तर पर शिविर लगाने, सत्संग, कथाओं और बड़ी धार्मिक सभाओं के आयोजन पर रोक लगा चुकी है। हालांकि, संन्यासी और बैैरागी अखाड़ों के कई संत सरकार और मेला प्रशासन पर लगातार संतों के शिविरों के लिए भूमि आवंटन के लिए दबाव बना रहे थे। सरकार और मेला प्रशासन पल-पल अपना रुख बदल रहा था। लेकिन अब मेला प्रशासन ने दो टूक कह दिया है कि सभी संत अपने अखाड़ों, छावनियों और आश्रमों से गंगा स्नान के निकलेंगे।बैरागी अखाड़ों में संतों के ठहरने के लिए आश्रम और भूमि जैसे संसाधन नहीं
पूर्व की तरह गंगा किनारे संतों के शिविर नहीं लगाए जाएंगे। इसमें सबसे बड़ा पेच यह है कि बैरागी अखाड़ों में संतों के ठहरने के लिए आश्रम और भूमि जैसे संसाधन नहीं हैं। पहले से ही बैरागी कैंप में इन अखाड़ों के संतों के शिविर लगाए जाते थे। ऐसे में अब मेला प्रशासन अखिल भारतीय अखाड़ा के साथ वार्ता के बाद बैरागी अखाड़ों की आवासीय सुविधा पर निर्णय लेगा।