भर्तियों को लेकर जो कुछ कहा जा रहा है उसको हम स्वस्थ मन से सोचें तो एक मंथन भी है। अभी सभी संस्थाओं में सुधार की प्रक्रिया जारी है, इस रूप में लेना चाहिए। मुख्यमंत्री जी का यह पत्र फेसबुक में आया है कि उन्होंने माननीया विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा है। अब एक बात तो सुनिश्चित हो गई है कि विधानसभा में भविष्य में नियुक्तियां एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक सर्वमान्य प्रक्रिया के तहत होंगी, प्रतियोगात्मक होंगी। दूसरी बात यह भी तय है कि ऐसी सारी नियुक्तियां जिनका भले ही वैधानिक आधार हो क्योंकि इस संदर्भ में माननीय हाईकोर्ट और माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से हम ऊपर नहीं जा सकते हैं।
जो नियुक्तियां नैतिक आधार नहीं रखती हैं, उन नियुक्तियों और नियुक्ति कर्ताओं के विषय में भी हमको माननीय स्पीकर और माननीय मुख्यमंत्री को और यदि उचित समझें तो नेता प्रतिपक्ष को बैठकर रास्ता निकालना चाहिए। ताकि विधानसभा रूपी हमारी संस्था का मान-सम्मान बढ़े, उसमें लोगों का विश्वास बढ़े। कहा-सुना माफ करें। मगर भर्ती घोटाले की तह तक जाना आवश्यक है। भर्ती घोटाले में संलिप्तता की 2016 से ही जांच अब आवश्यक प्रतीत होती है। यहां तक कि आयोग के उस समय के यदि त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया तो अध्यक्ष को लेकर जो मैंने ट्वीट किया था, मैं उसको भी वापस लेता हूं और इस संस्था के कार्यकरण की भी जांच करनी चाहिए। दोषियों को दंडित किया जाए और आवश्यक हो तो पहले की भी भर्तियों में यदि कोई घोटाले हुये हैं और जिन घोटालों में किसी व्यक्ति को लगता है कि न्याय सामने नहीं आया है।
वो ऑन एफिडेविट यदि कुछ कहता है तो एक पृथक एसटीएफ की टीम माननीय मुख्यमंत्री जी को गठित करनी चाहिए और वह विशेष एसटीएफ तब तक काम करे, जब तक ऐसे ऑन एफिडेविट लगाए गए आरोपों की तह तक जांच नहीं हो जाती है। हां मेरा प्रस्ताव है कि मेरे कार्यकाल में हुई नियुक्तियां, प्रमोशन आदि की भी यदि स्क्रूटनी आवश्यक है तो उसकी भी स्क्रूटनी की जानी चाहिए।
मेरे कार्यकाल में सर्वाधिक नौकरियां लगी इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं यह कहूं कि उन नियुक्तियों में यदि कहीं धांधली हुई है, भ्रष्टाचार हुआ है उसकी जांच न हो, उसकी भी यदि किसी व्यक्ति के पास पुष्ट जानकारियां हैं तो जांच होनी चाहिए। हां एक अनावश्यक भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार के माहौल से राज्य को बाहर निकलना चाहिए, ताकि सरकारी विभागों में नियुक्ति के लिए प्रतीक्षारत नौजवानों के साथ भी न्याय हो सके और दूसरे मापदंड भी तो हैं जिन पर सरकार का मूल्यांकन होना है। कहीं ऐसा न हो, ये भर्तियों को लेकर ऐसा कोहरा छा जाए कि हम सरकार क्या कर रही है, क्या नहीं कर रही है! वह सब ओझल हो जाए।