उत्तराखंड में पहली बार स्वास्थ्य नीति बनाने की तैयारी है। इसके लिए विभाग ने नीति का मसौदा तैयार किया है। शीघ्र ही सरकार स्वास्थ्य नीति को मंजूरी दे सकती है। इस नीति के बनने से स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और सेवाओं में सुधार होगा। जिलों के प्रभारी मंत्री भी नई स्वास्थ्य नीति पर लोगों से सुझाव लेंगे। जिसके बाद सरकार स्वास्थ्य नीति पर फैसला लेगी। प्रदेश में लोगों को बेहतर और गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए पहली बार उत्तराखंड की स्वास्थ्य नीति-2021 तैयार कर रही है। स्वास्थ्य विभाग ने नीति का खाका तैयार किया है। जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं को सुगम, सुलभ और गुणवत्ता युक्त बनाने पर सरकार का नीति में फोकस है। माना जा रहा है कि चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले सरकार स्वास्थ्य नीति पर फैसला ले सकती है। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में जहां सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। वहीं, चुनिंदा बड़े अस्पताल हैं। जिससे मरीजों को आपातकालीन सेवा में इलाज के लिए दूसरे क्षेत्रों में आना पड़ता है। प्रदेश की स्वास्थ्य नीति बनाने की प्रक्रिया चल रही है। प्रदेश की वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली की समीक्षा कर राज्य की स्वास्थ्य नीति तैयार की जाएगी।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद चिकित्सा सुविधाओं की गुणवत्ता सुधारने और एकरूपता लाने के लिए सरकार ने इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड (आईपीएचएस) मानकों के अनुरूप अस्पतालों को स्थापित किया है। जिसमें 13 जिला अस्पताल, 21 उप जिला चिकित्सालय, 80 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 52 पीएचसी टाइप-बी, 526 पीएचसी टाइप-ए, 23 अन्य चिकित्सा इकाईयां, 1897 उप स्वास्थ्य केंद्र है। इसके अलावा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हेल्थ वेलनेस सेंटर स्थापित किए गए हैं। एम्स ऋषिकेश के अलावा तीन राजकीय मेडिकल कॉलेज दून, श्रीनगर, हल्द्वानी चल रहे हैं। राजकीय मेडिकल कालेज अल्मोड़ा को शुरू किया जाना है। हरिद्वार, पिथौरागढ़ और रुद्रपुर में नए मेडिकल कालेज प्रस्तावित हैं। जिनका काम चल रहा है।
पब्लिक हेल्थ के लिए फ्रेम वर्क बनाने की जरूरत-
सोशल डेवलपमेंट फार कम्युनिटी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल का कहना है कि उत्तराखंड में जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार और विभाग को फ्रेम वर्क बनाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार को प्राथमिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना होगा। कैग की रिपोर्ट के अनुसार 2017 से 2019 तक पिछले तीन साल में उत्तराखंड में स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे कम खर्च हुआ है। प्रदेश में प्रति व्यक्ति पर 5887 रुपये खर्च हो रहे हैं। इसके साथ प्रशिक्षित डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ पर ध्यान देना होगा। सरकार निजी अस्पतालों को प्रोत्साहित करे, लेकिन निजी अस्पतालों की लूट खसोट पर नकेल कसनी चाहिए। तकनीकी का इस्तेमाल कर टेलीमेडिसिन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।