उत्तराखंड

बिग ब्रेकिंग:- केदारनाथ हेलीकॉप्टर हादसे की सामने आई सही वजह, जानिए किस वजह से गई इतने यात्रियों की जान

बाबा केदार के दर्शन कराने के लिए 18 साल से हेली सेवा संचालित हो रही है। लेकिन, अभी तक व्यवस्थित उड़ान के लिए कहीं भी एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावर स्थापित नहीं किया गया है। जबकि, बीते छह वर्षों में भारतीय सेना का एमआई-26 और चिनूक हेलीकॉप्टर भी यहां लैंड कर चुके हैं।

 

 

समुद्रतल से 11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तीन तरफा पहाड़ियों से घिरा हुआ है। सिर्फ केदारघाटी वाला क्षेत्र है, जो वी आकार का है और यही केदारनाथ पहुंचने का एकमात्र रास्ता भी है। मंदाकिनी नदी का स्पान काफी कम होने के कारण दोनों तरफ ऊंची पहाड़ियां हैं, जिससे घाटी बहुत ही संकरी है। साथ ही यहां मौसम का मिजाज कब खराब हो जाए, कहना मुश्किल है।

 

 

चटक धूप के बीच पलभर में पहाड़ियों के ओट से बादलों का झुंड और कोहरे की चादर पूरे क्षेत्र में ऐसे फैल जाती है कि कई बार पचास मीटर तक भी साफ नहीं दिखाई देता है। हालात यह हैं कि केदारघाटी के हेलीपैडों से लेकर केदारनाथ हेलीपैड पर हेली कंपनियों के कर्मचारी अपने-अपने हेलीकॉप्टरों की उड़ान के लिए रंग-बिरंगी झंडी लगाकर हवा की दिशा और दबाव का अनुमान लगाते हैं।

 


केदारनाथ के लिए 18 वर्ष पूर्व 2004 में अगस्त्यमुनि से केदारनाथ के लिए पहली बार हेलीकॉप्टर सेवा शुरू हुई थी। जून 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ यात्रा को सरल व सुलभ बनाने के लिए धरातल पर रत्तीभर इंतजाम भी नहीं हुए। केदारनाथ में हवा की दिशा और दबाव में की कोई जानकारी नहीं मिल पाती है, जिससे दुर्घटना का खतरा रहता है। हैरत यह है कि बीते एक दशक मेें केदारनाथ क्षेत्र में हेलीकॉप्टर क्रैश होने व तकनीकी खराबी की दस घटनाओं के बाद भी यूकाडा और उत्तराखंड सरकार गंभीर नहीं है।

 

केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा केदारघाटी से केदारनाथ के लिए उड़ान भरने के लिए हेलीकॉप्टर के लिए नदी के तल से 600 मीटर की ऊंचाई तय की गई है। बावजूद, अधिकांश कंपनियां इस नियम का पालन नहीं करती हैं। उनके हेलीकॉप्टर वन क्षेत्र में काफी नीची उड़ान भरते हैं। यहां तक कि इस वर्ष जून में दो कंपनियों के हेलीकॉप्टर तो केदारनाथ से बदरीनाथ के लिए तुंगनाथ के रास्ते होकर उड़ान भरकर चले गए थे। शासन तक पहुंचे इस मामले में आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।

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Author: Pawan Rawat
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