उत्तराखंड में कोरोना की दूसरी लहर ढलान पर है। पर अब तीसरी लहर की आशंका जताई गई है, जिसे बच्चों के लिए घातक माना जा रहा है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की टास्क फोर्स ने अपना काम शुरू कर दी है। प्रथम चरण में प्रोफाइलेक्सिस की रणनीति पर काम किया जाएगा। इसके तहत बच्चों में मास सप्लीमेंटेशन होगा।एचएनबी उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. हेमचंद्रा की अध्यक्षता में टास्क फोर्स की पहली बैठक आयोजित की गई। उन्होंने कहा कि संक्रमण से बचाव के लिए सबसे पहले बच्चों में मास सप्लीमेंटेशन (प्रारंभिक स्तर पर पूरक उपचार) को शुरू करना होगा, जिसमें जिंक और विटामिन-डी की खुराक दिए जाने के लिए मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार कर इसे अमल में लाने के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करनी होगी। सबसे पहले बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के लिए काम करना है। उन्होंने सभी निजी चिकित्सकों और बाल रोग विशेषज्ञों से अनुरोध किया कि वह मिलकर बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर चिंतन करें और समन्वित प्रयास से उपचार की कारगर रणनीति बनाने में मदद करें। प्रोफाइलेक्सिस की प्रभावी रणनीति के लिए आइसीएमआर, विश्व स्वास्थ्य संगठन व अन्य संस्थाओं के सुझाव भी लिए जाएं। रुड़की के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशांक ऐरन ने कहा कि तीसरी लहर कितनी गंभीर होगी और बच्चों को कितनी अधिक संक्रमित करेगी, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसलिए संभावना के आधार पर तैयारियां करने रहना चाहिए। वहीं, सामान्य जनमानस में भय भी उत्पन्न नहीं होने देना है। अच्छी बात ये है कि कोरोना की दूसरी लहर में स्वयं प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर स्वस्थ हुए हैं। बैठक में निदेशक एनएचएम डॉ. सरोज नैथानी, पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, हिमालयन इंस्टीट्यूट के बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. गिरीश गुप्ता, हरिद्वार से डॉ. सुधरी चौधरी, काशीपुर से डॉ. रवि सहोता, एचआइएचटी से प्रो. अल्पा गुप्ता, रुड़की से डॉ. अशांक ऐरन, विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ. विकास शर्मा, दून मेडिकल कॉलेज से बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार आदि उपस्थित रहे।बच्चों में नहीं दिखा गंभीर कोविड न्यूमोनिया
टास्क फोर्स की सदस्य सचिव और एनएचएम निदेशक डॉ. सरोज नैथानी ने बताया कि उत्तराखंड में 0-9 वर्ष के बच्चों की संख्या 23 लाख 56 हजार 792 है, जबकि 10-19 वर्ष के कुल 26 लाख 96 हजार 337 बच्चे हैं। साल 2020-21 में कोविड ग्रसित ज्यादा बच्चे 10-17 साल के रहे हैं। गंभीर कोविड न्यूमोनिया के मामले बच्चों में नहीं दिखे हैं।
इन बिंदुओं पर मंथन
-तीसरी लहर से निपटने के लिए ‘पब्लिक हेल्थ रिस्पांस’ की क्या कार्ययोजना होगी और इसे किस तरह अमल में लाया जाएगा
-बच्चों के लिए कितनी बेड की आवश्यकता होगी, जिसमें आइसीयू, ऑक्सीजन व आइसोलेशन बेड सम्मलित हैं।
-उपचार के लिए आवश्यक दवाएं, बेसिक उपकरण आदि की उपलब्धता। जिसमें बच्चों के वेंटिलेटर व अन्य उपकरण महत्वपूर्ण हैं।
-प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला चिकित्सालय, निजी अस्पताल व मेडिकल कॉलेज स्तर पर देखभाल व उपचार का नियत प्रोटोकॉल।
-सरकारी व निजी अस्पतालों की उपलब्धता को देखते हुए कलस्टर एवं समन्वित संसाधन का उपयोग।
ये आए सुझाव
-बच्चों का टीकाकरण जल्द शुरू किया जाए। वैक्सीन की दोनों खुराक देने की प्रभावी रणनीति बने।
-बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने संबंधित दवाएं आरंभ करें।
-निजी व सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर का संचालन, आइसीयू में देखभाल व अन्य परिस्थितियों में उपचार के लिए स्वास्थ्य कर्मियों व अधिकारियों का प्रशिक्षण।
-सरकारी व निजी अस्पतालों के लिए एक समान रेफरल नीति।
-रेफरल ट्रांसपोर्ट के तहत चालक व ईएमटी स्टाफ का संचालन।
