उत्तराखंड

उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज बोले, चमोली त्रासदी से प्रभावित नहीं होगी चारधाम यात्रा

देहरादून । उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा है कि चमोली त्रासदी के कारण चारधाम यात्रा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए आवश्यक सड़कों को जल्दी ही पूरी तरह से साफ कर दिया जाएगा। आसपास के इलाकों में धार्मिक पर्यटकों के ठहरने के लिए किसी तरह की समस्या न हो, इसके लिए भी आवश्यक तैयारियां की जा रही हैं। चारधाम यात्रा शुरू होने में अभी लगभग दो महीने का समय है। तब तक रास्तों पर पड़ा मलबा हटा दिया जाएगा। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा चमोली त्रासदी दिन के समय होने के कारण जानमाल बचाने में काफी मदद मिली। केंद्र से सुरक्षा बलों के जवान और एनडीआरएफ की टीम तत्काल सक्रिय हुई, जिससे लोगों को बचाने में बड़ी मदद मिली। इसमें मौसम ने भी मदद की और त्रासदी के बाद बारिश या और बर्फबारी नहीं हुई। अगर यही त्रासदी रात के समय हुई होती तो स्थिति बहुत गंभीर होती जैसा कि केदारनाथ त्रासदी के समय हुआ था। एनटीपीसी प्लांट से भारी संख्या में लोगों के लापता होने की खबर है। इनके बचाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। सतपाल महाराज ने कहा कि नियमों के अनुसार जहां भी टनल में कामकाज होता है, वहां लगभग एक मीटर मोटाई की लोहे का मजबूत पाइप भी बिछाया जाती है। इससे ग्लेशियर टूटने, एवलांच होने या किसी अन्य दुर्घटना के समय लोग इसी के रास्ते से बचकर निकलते हैं। इस घटना में यह पाइप बिछाया गया था या नहीं, वे इसकी जांच कराएंगे। सतपाल महाराज ने कहा कि चमोली त्रासदी जैसी घटनाओं से लोग बेहद संवेदनशील हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि वे अपील करते हैं कि लोग धैर्य बनाए रखें और एजेंसियों को लोगों की जानमाल बचाने में सहयोग करें। उन्होंने कहा कि अति संवेदनशील होने से चीजें ज्यादा खराब हो जाती हैं और इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए। पर्यटन मंत्री ने कहा कि चमोली के रैनी गांव में यह त्रासदी हुई थी। इसके कारण विष्णु प्रयाग तक बहाव बहुत तेज था। लेकिन अलकनंदा तक आते-आते पानी और मलबे का वेग बहुत कम हो गया और स्थिति नियंत्रण में आ गई। श्रीनगर के बांध से पानी को खाली कराकर इसमें तेज रफ्तार का पानी रोकने की रणनीति बनाई गई है। इस कारण पानी की गति तेज नहीं रह जाती और विनाश की संभावना को कम से कम करने की कोशिश कर ली जाती है। 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी के समय भी इस बांध ने घटना की गंभीरता को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई थी।

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