रामनगरी अयोध्या, आगामी 05 अगस्त को भूमि पूजन के लिए तैयार है और वर्ष 1989 के प्रतीकात्मक भूमिपूजन से एक कदम आगे की कड़ी का साक्षी बनने को आतुर है।
ध्यातव्य है कि वर्ष 1934 से लेकर 2019 के अंतिम निर्णय तक, विभिन्न साधु संतों के संघर्ष की अंतिम परिणति, भव्य राम मंदिर के निर्माण के रूप मे आ रही है जिसके लिए हजारो-लाखो रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी है और राजनीतिक पार्टियों ने अपनी सत्ता गंवाई है। निस्संदेह यह अवसर स्वर्गातीत हर्षोल्लास, आत्मिक संतोष और राम भक्ति भावना की विजय का है।
श्री रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण सत्तारूढ़ भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार के लिए हमेशा ‘आंखो की किरकरी’ रहा था और इसका ठोस समाधान कुछ अवसरवादी लोग कभी भी नहीं चाहते थे। वर्तमान की मोदी सरकार ने अपने चुनावी वादों पर अमल करते हुये समग्र जन भावना का सम्मान किया है और उ.प्र. के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह शुभ अवसर अपने गुरुओं के सपने को जीते जी साकार करने जैसा है।
जहां समूचा देश आगामी 05 अगस्त को इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का साक्षी बनने को आतुर है वहीं दूसरी ओर द्वारिका- शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी का यह बयान देना कि उस दिन मंदिर निर्माण के आरंभ किए जाने का कोई भी शुभ मुहूर्त नहीं है , इस देश की धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचाने जैसा है। देश के कई ज्योतिषियों का भी यह मत है कि देवशयन के उपरांत , भाद्रपद मास मे मंदिर निर्माण जैसे कार्य के प्रारम्भ का कोई शुभ मुहूरत नहीं है खासकर तब जबकि सूर्य की स्थिति दक्षिणायन मे है और 05 अगस्त को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि है और उस दिन अभिजीत मुहूर्त है ही नहीं। अब इस पूरे प्रकरण को कई विचारक, अहम का टकराव भी मान रहे हैं। मीडिया का एक धड़ा यह जानता है कि शायद रामजन्मभूमि निर्माण के समूचे कार्यक्रम मे शारदा पीठ शंकराचार्य जी को वह प्राथमिकता नहीं दी जा रही है जिसकी उन्हे उम्मीद थी। और भी कई नेता रुष्ट हैं जोकि पूर्व मे रामलला विराजमान के संघर्ष मे मुखर भूमिका निभा चुके हैं, उन्हे भी योगी सरकार द्वारा मंदिर निर्माण भूमि पूजन मे नहीं पूछा गया है जिससे वह आहत हुये हैं और उनकी व्याकुलता कई टीवी चैनलों के माध्यम से दिखाई भी पड़ जाती है, शायद आने वाले समय मे उनको मना भी लिया जाए।
*राम भक्तों की आस्था के हिसाब से सोचें तो मंदिर निर्माण का कोई भी दिन, कोई भी समय, शुभ ही होगा, आखिरकार भगवान की पूजा मे भाव का महत्व दिखाव से ज्यादा होता है* और राजनीतिक परिदृश्य के हिसाब से सोचें तो शायद भूमिपूजन से पूर्व एक वैचारिक मंथन करके सभी धड़ों का एकजुटता दिखाना ज्यादा श्रेयस्कर लगता है। राम तो निर्विकार ,निर्भेद रूप से सभी के हैं, वो विरोधी धड़ों के भी उतने ही पूज्य हैं जितने कि राममंदिर निर्माण का श्रेय लेने वाले धडे के। ऐसे मे समूचे संत समाज का एकजुटता दिखाना ही धर्म की कसौटी पे खरा उतर पाना कहलाएगा। आपसी मनमुटावों को भुलाकर, हर किसी छोटे बड़े रामभक्त के योगदान का आभार व्यक्त करने का गौरवशाली दिन, 05 अगस्त बन सके तो शायद यही राममंदिर भूमि पूजन की वास्तविक आधारशिला होगी और सही मायनो में बापू के संकल्पित रामराज्य कि शुरुआत भी होगी। निश्चित रूप से आगामी पाँच अगस्त का दिन भारत के इतिहास मे कालजयी क्षणों का शिल्पकार होगा।