पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत करीब 30 साल बाद अपने राजनीतिक जीवन के अहम मोड पर खड़े हैं . कांग्रेस ने हरक सिंह रावत की बहू को अपना प्रत्याशी बनाया है लेकिन जैसा कहा जा रहा था हरक सिंह रावत की जगह मनीष खंडूरी के करीबी केसर सिंह को कांग्रेस ने चौबट्टाखाल से टिकट दे दिया हैऐसे में अपने राजनीतिक करियर में पहली बार चुनाव लड़ने के बजाए लड़वाने की भूमिका में आ गए हैं. वह वर्ष 1991 में पहली बार भाजपा के टिकट पर पौड़ी से विधायक बने थे. अपने 32 साल के चुनावी इतिहास में वे विधानसभा का सिर्फ एकबार चुनाव हारे हैं. इन 30 सालों में ये पहला मौका है, जब हरक का दांव अभी तक फिट नहीं बैठा.
वह बहू को लैंसडौन से टिकट दिलाने में तो कामयाब रहे, लेकिन अपने लिए अभी तक टिकट का इंतजाम नहीं कर पाए. वे भले ही खुद के चुनावी मैदान से दूर रहने की बात कर रहे थे , लेकिन उनके समर्थकों को आस थी कि चौबट्टाखाल से उन्हें टिकट मिल जाएगा लेकिन कांग्रेस की अंतिम लिस्ट ने उनकी ये आस भी तोड़ दी. हरक राज्य गठन के बाद किसी न किसी रूप से सत्ता में रहे हैं. 2002, 2012, 2017 में हुए चुनाव के बाद वो सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. 2007 में जब कांग्रेस विपक्ष में थी, तो वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में थे.
एक दल में औसतन पांच साल ही रुकते हैं हरक- हरक करीब तीन दशक से चुनावी राजनीति में हैं. 1991 से अभी तक वे करीब छह बार पार्टी बदल चुके हैं. वर्ष 1991 से लेकर 2022 के बीच उनका हर राजनीतिक पार्टी में रुकने का औसत समय पांच साल है. वे अधिक समय तक एक पार्टी में नहीं रुक पाते हैं. वर्ष 1991 से जिस भाजपा के टिकट पर वे दो बार विधानसभा पहुंचे. उसी भाजपा को वर्ष 1996 के चुनाव में उन्होंने नमस्ते कर दी. 1996 के चुनाव में वो जन मोर्चा पार्टी बनाकर मैदान में उतरे और चुनाव हारे.