उत्तराखंड को बने 20 साल हो गए हैं लेकिन इतने सालों में पहली बार किसी सरकार पर विपक्षी भ्रस्टाचार के मुद्दे पर नहीं घेर पा रहे हैं हालात ये है कि उन्हें कभी कोरोना याद आ रहा है तो कभी चैंपियन लेकिन सीएम की संख्त कार्यशैली के चलते दलालों और लाइजनरो कि जो दुकान बंद हूई है उसके चलते सरकार को घेरने का किसी के पास कोई मुद्दा नही रह गया है वही त्रिवेंद्र सिंह रावत का राज एक ऐसे तबके को हमेशा याद रहेगा, जो सत्ता में न होते हुए भी सत्ता को अपनी उंगलियों पर नचाता रहा है। त्रिवेंद्र राज में दलाली की दाल न गलने से सत्ता के गलियारों में वर्षों से दलाली करने वाले ये दलाल अब बुरी तरह हताश हो गये हैं। यही कारण है कि उन्होंने सोशल मीडिया व मीडिया के बिकाऊ पत्रकारों को साथ लेकर सरकार के हर अच्छे काम में भी मीनमेख निकाल कर सरकार को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
राज्य गठन के बाद इस राज्य में खनन, शराब, ट्रांसफर-पोस्टिंग, टेंडर व सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले माफियाओं का धंधा खूब फला फूला। राजनीतिक दलों से जुड़े कार्यकर्ताओं के साथ-साथ इस धंधे में वो लोग भी आये जो पत्रकारिता की आड़ में पहले से ही सत्ता का मजा ले रहे थे। सचिवालय व मंत्रालयों में ऐसे दलाल मोटी-मोटी फाइलें लेकर दिन भर माल समेटा करते थे। कुछ हाई प्रोफाइल दलाल तो बड़े नेताओं, मंत्रियों व बड़े अफसरों के रिटायरिंग रूम में बेखौफ पड़े रहते थे।
2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार ने जब कामकाज शुरू किया तो दलालों व माफिया ने भी सरकार में एंट्री मारने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। माफिया यहां के खनन, शराब, टेंडर और ट्रांसफर पोस्टिंग जैसे कामों को पहले ही उद्योग का रूप दे चुका था, इसलिए यह माना जा रहा था कि इस सरकार में भी यह सब पहले की तरह बदस्तूर चलता रहेगा। अब पता चल रहा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ लेते ही दलालों की कमर तोड़ने का पूरा मन बना लिया था। इसलिए उन्होंने सरकार बनाते ही कुछ ऐसे फैसले लिये जो जिसने दलालों व माफिया के कैंप में खलबली मचा दी।
त्रिवेंद्र रावत ने कुर्सी संभालते ही सबसे पहले ट्रांसफर एक्ट बना दिया। इस एक्ट के बनने से ट्रांसफर-पोस्टिंग में होने वाला अरबों का रुपये का न्यारा-वारा रुक गया। एक्ट में जरूरतमंद कार्मिकों के लिए धारा-27 का प्रावधान रखा, ताकि बीमार व अन्य कोई पारिवारिक मजबूरी वाले कार्मिकों को राहत देने का रास्ता बना रहे, लेकिन पैसा लेकर मनमाफिक जगहों पर ट्रांसफर करा देने वाले दलालों के लिए सारे रास्ते इस एक्ट ने बंद कर दिये। यहीं से सत्ता के गलियारों में घूमने वाले दलालों को करारा झटका लगा। बताया जाता है कि ट्रांसफर के दलाल एक शिक्षक से लेकर इंजीनियर और एसडीएम, तहसीलदार, थानेदार से लेकर डाक्टर को सीएमओ, सीएमएस बनाने के लिए भी बोली लगाते फिरते थे। ट्रांसफर एक्ट आने के बाद इन ट्रांसफर दलालों की कमर टूट गयी। उसके बाद त्रिवेंद्र सरकार ने टेंडर की प्रक्रिया को भी मैनुअल से हटा कर ई-टेंडरिंग कर दी। जिन दलालों ने टेंडर दिलवाने के काम के ठेके ले रखे थे उनके लिए भी मुहं दिखाना मुश्किल हो गया, सरकार के इस फैसले से दलालों की इस सेक्टर में भी एंट्री बंद हो गयी।
दलाली का एक और बड़ा सेक्टर था खनन। यहां खनन में हर साल अरबों-खरबों का कारोबार होता है। माफिया और दलाल इस पूरे खनन के कारोबार पर एकाधिकार करके सरकारी खजाने को तो चूना लगा ही रहे थे आम आदमी को भी इस कमाई वाले क्षेत्र में नहीं घुसने दे रहे थे। खनन पट्टों का अलाटमेंट शासन स्तर से होने के कारण दलालों के यह आसान होता था कि पट्टे किसे दिलाये जाएं। सरकार ने पिछले तीन साल में खनन सेक्टर में बड़े परिवर्तन कर दिये हैं। अब खनन के पट्टे जिलाधिकारी के स्तर से आवंटित होते हैं। जिलाधिकारी को इसमें होने वाली हर तरह की गड़बड़ी वह चाहे राजस्व चोरी की हो, अनियम तरीके से खनन करने का हो, या फिर एग्रीमेंट से बाहर जाकर खनन का मसला हो, के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराते हुए पट्टे निरस्त करने का अधिकार भी सरकार ने दे दिया है। इस व्यवस्था से खनन में एकाधिकार रखने वाले माफिया पर सरकार का जोरदार हंटर चला और उनकी भी कमर टूट गयी।
खनन, शराब, ट्रांसफर माफिया के बाद त्रिवेंद्र रावत का चाबुक भू-माफिया पर चला। रेरा के तहत भू-माफियाओं पर नकेल कसते हुए त्रिवेंद्र सरकार ने सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले दलालों की मंशाओं पर पानी फेरते हुए जमीनों की अवैध खरीद-फरोख्त पर लगाम लगाया। इसके अलावा जनहित कार्यों के नाम पर कब्जाई गई हजारों एकड़ जमीन सरकार में निहित करवाई। देहरादून में अंगेलिया सोसाइटी की ११०० एकड़ जमीन सहित डोईवाला में सैकड़ों एकड़ जमीन और ऊधमसिंह नगर में पराग फार्म की जमीन सहित कई अन्य अरबों-खरबों की जमीनों को राज्य सरकार में निहित करवा दिया।
त्रिवेंद्र रावत के इस सफाई अभियान से मुख्यमंत्री कार्यालय और मंत्रालयों को भी आज काफी हद तक दलाली से मुक्ति मिल चुकी है। अब न तो कोई आईएएस पैसा देकर डीएम बनता है और न ही कोई आईपीएस कप्तान बनने के लिए पैसा देता है। साफ है सरकार को अपनी उंगलियों पर जो दलाल नचाना चाहते थे और खनन तथा आबकारी नीति को अपने हिसाब से बनवाने से लेकर अफसरों की पोस्टिंग में दखलंदाजी करना चाहते थे। यही नहीं ये दलाल पावर प्रोजेक्ट आवंटन व सरकार के बड़े ठेकों को दिलाने में भी हस्तक्षेप करने की ख्वाहिश रखते थे लेकिन त्रिवेंद्र रावत ने इन सबके मंसूबों पर पानी फेर दिया। सुनने में तो आ रहा है कि त्रिवेंद्र रावत ने इंटेलिजेंस की एक बड़ी टीम को इस पूरे रैकेट और इनको फाइनेंसियल सपोर्ट करने वाले राजनेताओं की कुंडली खंगालने का टास्क दे दिया है। सूत्रों के मुताबिक इंटेलिजेंस की टीम ने दलालों के तार को हेड से टेल तक ट्रेस भी कर लिया है। शीर्ष पर वे राजनेता हैं, जो अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए सरकार को अस्थिर करते हैं। वे उमेश जे कुमार जैसे दलालों को आगे करके काम करते रहते हैं। यह भी पता चल रहा है कि ये राजनेता इन दलालों को इस काम के लिए मोटा पैसा भी उपलब्ध करा रहे हैं। दलालों के इस कुनबे में टेल पर एक तरफ तो वो लोग हैं जो सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार या मुख्यमंत्री को लेकर अभद्र भाषा से टिप्पणियां करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं दूसरी तरफ कुछ ऐसे तथाकथित पत्रकार भी हैं जो इनके टुकड़ों पर न्यूज पोर्टल, मैगजीन या छोटे-बड़े समाचार पत्रों में त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ ख़बरें छापने में लाए हुए है। यही कारण है कि देवस्थानम बोर्ड व गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी जैसे सरकार के बड़े व महत्वपूर्ण फैसलों को भी इन्होंने नकारात्मक खबर के रूप में प्रचारित किया। ऐसी खबरों में जानबूझकर विपक्ष के नेताओं के बयान डालकर उन्हें समाचार का रूप देने की नापाक कोशिश ये लोग समय-समय पर करते रहते हैं। बताया जा रहा है कि इंटेलिजेंस ने दलालों के इस पूरे कुनबे की हिस्ट्री को अच्छे से खंगाल लिया है ।
भ्रस्टाचार पर सीएम त्रिवेंद्र का वार , दलाल सिस्टम से हुए आउट
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